Sunday, May 19, 2024
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श्रीनगर: कश्मीर में आज भी ‘तांगा सवारी’ लोकप्रिय साधन

श्रीनगर: 11 अप्रैल (वार्ता) आधुनिक युग में परिवहन के बढ़ते साधनों के बीच जम्मू-कश्मीर में तांगे की सवारी आज भी लो कप्रिय साधन है। तांगे के व्यवसाय से ना केवल लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं बल्कि अपने परिजनों का जीवन-यापन कर रहे हैं। यहीं नहीं यहां के घोड़े कई हिंदी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं जिससे उसके मालिक की भी अच्छी कमाई हो जाती है। घोड़ा गाड़ी के मालिक गुलजार अहमद वागी ने मंगलवार को यहां कहा,“मेरा तांगा पहलगाम में ब्लॉकबस्टर हिंदी फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग के दौरान इस्तेमाल किया गया था और मैं वहां पांच दिनों तक रहा और अच्छी कमाई की।” बहरहाल, परिवहन के तेज और आरामदायक साधनों के आगमन के साथ, परिवहन का सबसे पुराना साधन माना जाने वाला घोड़ागाड़ी या ‘तांगा सवारी’ बहुत तेजी से घट रही है। दक्षिण कश्मीर के सरनाल अनंतनाग क्षेत्र में, तांगा सेवा अभी भी लोकप्रिय है, जो मुख्य मटन चौक से लोगों को आवागमन कराता है। गुलजार अहमद ने यूनीवार्ता से कहा,“वह पिछले 35 सालों से इलाके में तांगा चला रहे हैं। मेरे पिता भी यही काम करते थे और मैं भी इसी काम से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं।” इन सभी वर्षों के दौरान उन्होंने कभी किसी अन्य नौकरी में जाने के बारे में नहीं सोचा। उन्होंने कहा कि अगर यात्रा करने के लिए परिवहन के विभिन्न साधन हैं, फिर भी कई लोग ‘तांगे’ में यात्रा करना पसंद करते हैं, बल्कि तांगे में यात्रा करना कुछ लोगों का शौक हैं। गुलज़ार एक व्यक्ति के लिए प्रति सवारी दस रुपये चार्ज करते हैं। उऩ्होंने कहा,“यह एक अच्छा काम है और हम करोड़ों नहीं कमाते हैं, लेकिन हम अपने परिवारों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त कमाते हैं।” उन्होंने कहा कि तांगा की सवारी सुरक्षित है क्योंकि दुर्घटनाओं की संभावना कम होती है और आज नए स्टाइलिश तांगे हैं जो सवारों के लिए आरामदायक भी हैं। कहा कि एक घोड़ा-गाड़ी या तांगे की कीमत कम से कम दो लाख होती है। उन्होंने कहा, “सरकार ने एक बार बैंक ऋण पर तांगा के बदले वाहन देने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने ब्याज मुक्त ऋण की मांग की, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया, इसलिए हमने उनका व्यवसाय चलाना जारी रखा।” गुलजार ने कहा,“एक बुजुर्ग व्यक्ति ने मुझे एक बार सलाह दी थी कि घोड़ा गाड़ी पेशा केवल आजीविका का साधन नहीं है बल्कि कश्मीर की संस्कृति का हिस्सा भी है, इसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए।” उनका मानना है कि अगर सरकार तांगा सवारी में सुधार कर उसे यात्रियों की जरूरत के मुताबिक बनाना चाहती है तो इससे न सिर्फ पेशा जिंदा रहेगा बल्कि पारंपरिक सवारी भी बचेगी और इससे जुड़े लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी। एक यात्री गुलाम अहमद ने कहा कि ‘तांगा सवारी’ को शाही सवारी के रूप में भी जाना जाता है और कभी यह राजाओं के लिए भी परिवहन का मुख्य स्रोत था। उन्होंने कहा कि मोटर वाहनों के आगमन के साथ ही ‘तांगा सवारी’ की प्रथा विलुप्त हो गई है, लेकिन लोगों को तांगा में भी यात्रा करनी चाहिए ताकि यह संस्कृति जीवित रह सके और इससे जुड़े लोगों की आजीविका भी बनी रहे। उल्लेखनीय है कि समय बचाने और आराम से यात्रा करने के लिए लोग आज परिवहन के आधुनिक साधनों का उपयोग करना पसंद करते हैं जिसके अपने फायदे और नुकसान हैं। हालाँकि, कश्मीर घाटी के कुछ क्षेत्रों में, ‘तांगे’ या घोड़े से चलने वाली गाड़ियाँ अभी भी चल रही हैं। कुछ लोगों के लिए इस तरह की सवारी का इस्तेमाल करना एक शौक होता है।

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