जम्मू-कश्मीर: इतिहास के समान ही कश्मीर की पश्मीना शॉल हो और पेपर माशी कला समृद्ध है। इनमें से एक है फुलकारी कला है, जो संस्कृति की गरिमा, शैली और खूबसूरती की प्रतीक रही है, लेकिन बदलते समय के साथ लुप्त होती गई है। इसमें जम्मू की बेटी एवं युवा उद्यमी शालू डोगरा से फिर से जान फूंकने में लगी है। फुलकारी कला के संरक्षण से न सिर्फ खुद को सबल बना रहीं हैं, बल्कि अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भरता के लिए मंच प्रदान कर रही हैं।शालू डोगरा ने बताया कि लुप्त हो रही फुलकारी कला के पुनरुद्धार के लिए लंबे समय से काम कर रही हैं। लेकिन 2017 से इसे आमदनी का जरिया भी बना लिया है। इसके पुनरुद्धार के लिए 2021 में हस्तशिल्प विभाग के साथ जुड़ी और शलैज फुलकारी नाम से सोसायटी का पंजीकरण करवाया। इसमें 13 निपुण महिलाओं को साथ जोड़ा और कला को मंच प्रदान किया। आज ये कला उनके लिए रोजगार का साधन बन गई है।
कारखानदार योजना का बनीं हिस्सा
शालू डोगरा ने सरकार की महत्वाकांक्षी कारखानदार योजना के साथ उद्यमी बनने का सफर शुरू किया। योजना के तहत दस्तकारों और बुनकरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वह परंपरागत डिजाइन और बाजार की मांग के बीच तालमेल बना कर सामान तैयार कर सकें। इससे न सिर्फ कला का संरक्षण और विकास हो रहा है, बल्कि सामाजिक व आर्थिक उत्थान भी हो रहा है।
रेशम के धागे से हो रही है फुलकारी कला
पहले दुपट्टे तक सीमित फुलकारी कला का इस्तेमाल अब जैकेट, हैंडबैग, कुशन कवर, टेबल मैट, फाइल फोल्डर्स, जूतियाें और ब्लेजर में किया जा रहा है। फुलकारी पहले खादर सामग्री पर होती थी, लेकिन अब शिफॉन और रेश्म जैसी सामग्री पर हो रही है। पारंपरिक धागे की जगह अब रेशम के धागे का इस्तेमाल हो रहा है। युवाओं को इस कला से जोड़ने के लिए जैकेट और पैंट पर फुलकारी कला की जा रही है।